पॉक्सो अधिनियम: हरियाणा की एक अदालत ने एक मूक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के आरोपियों को दी मृत्यु दंड की सजा

पॉक्सो अधिनियम: हरियाणा की एक अदालत ने एक मूक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के आरोपियों को दी मृत्यु दंड की सजा

  • Hindi
  • June 12, 2023
  • No Comment
  • 1168

हरियाणा की एक विशेष पॉक्सो कोर्ट ने हाल ही में एक मूक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के आरोपियों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई है।

पलवल की विशेष न्यायालय (पॉक्सो) में एडिशनल जज प्रशांत राणा ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपियों को पॉक्सो अधिनियम की धारा 6, आईपीसी की धारा 364 (हत्या के लिए अपहरण ) धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (अपराध के साक्ष्य को ग़ायब करना) के तहत दोषी पाए जाने पर मृत्यु दंड देने का आदेश पारित किया।

कोर्ट ने इस मामले में दोनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर मृत्यु दंड के अतिरिक्त पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपराध के लिए भी मृत्यु दंड देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने दोनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 364 और 34 के अपराध का दोषी पाते हुए 5 हज़ार रूपये के जुर्माने सहित आजीवन कारावास और आईपीसी की धारा 201 में अपराध की लिए 5 हज़ार रूपये के जुर्माने सहित 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।

कोर्ट के समक्ष अभियोजन का मामला यह था कि एक अत्यंत निर्धन विकलांग परिवार की 9 साल की बच्ची का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी। एक दोषी ने बौद्धिक रूप से विकलांग बच्ची को अमरूद खरीदने के लिए 20 रुपए दिए उसके बाद बीच रास्ते में दोनों दोषियों ने पीड़िता को पकड़ लिया और उसे पास के एक ज्वार के खेत में ले जाकर उसके हाथों को बाँधने के बाद दोनों दोषियों ने तीन बार उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। दोषियों ने बीड़ी जला कर पीड़िता की आखों को जलने के बाद उसकी गला घोंट कर की हत्या कर दी थी।

अभियोजन पक्ष ने कोर्ट से कहा था कि पीड़िता की मौके पर ही मौत हो गई थी। रात भर उसका शव खेत में पड़ा रहा। अगले दिन जब उसके चेहरे और शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे तब उसकी मौत का पता चला था।

अभियोजन पक्ष ने अपनी प्रस्तुति में कहा था कि पीड़िता और उसके परिवार के किसी सदस्य ने आरोपियों के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया था। दोषियों के लिए उनके शारीरिक और मानसिक विकृतियों को छोड़कर बर्बर कृत्यों को करने का कोई मकसद नहीं था।

अभियोजन पक्ष का तर्क था कि दोषियों द्वारा किये गए अपराध की क्रूरता को देखते हुए वर्तमान मामला दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी में आता है जहाँ मृत्यु दंड ही एक मात्र उचित सजा है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मिथु बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब 1983, बंटू बनाम स्टेट ऑफ़ यू पी 2008, मुकेश व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ एनसीटी दिल्ली व अन्य 2017 और बच्चन सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब 1982 के मामलों में दिए गए आदेश पर भरोसा जताया गया था।

अभियोजन पक्ष का तर्क था कि अपराध की गंभीर प्रकृति को देखते हुए, दोषियों को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए, क्योंकि आजीवन कारावास एक अपर्याप्त सजा होगी।

दोषियों के वकील का तर्क था कि यह मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। दोषियों के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है।

एक दोषी को उसके परिवार ने छोड़ दिया है। तीन सालों से परिवार को कोई सदस्य उससे जेल में मिलने नहीं आया। एक दोषी अभी युवा है जिसकी उम्र 19 साल है। दोनों दोषियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उन्हें खुद को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में उन्हें न्यूनतम निर्धारित सजा दी जाए।

दोषियों की ओर से वकील ने प्रस्तुति में दोषियों को सजा देने में नरमी बरतने की प्रार्थना की थी।

कोर्ट ने दोषियों की ओर से प्रस्तुत तर्कों को ख़ारिज करते हुए मदन गोपाल कक्कड़ बनाम नवल दुबे व अन्य 1992 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जिसमे कहा गया था कि ” हम महसूस करते हैं कि न्याय की तलवार धारण करने वाले न्यायाधीशों को यदि अपराधों की गंभीरता की मांग हो तो उस तलवार को पूरी गंभीरता के साथ, पूर्ण रूप से और अंत तक उपयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”

कोर्ट ने वसंत सम्पत दुपारे बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र 2017 हवाला दिया जिसमे सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक नाबालिग बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी की मृत्यु दंड की सजा को बरक़रार रखने का आदेश देते हुए कहा गया था कि “जैसा कि हम पाते हैं इस मामले में न केवल क्रूर तरीके से बलात्कार किया गया था बल्कि हत्या भी बर्बर तरीके से की गई थी। एक नाबालिग बच्ची का बलात्कार और कुछ नहीं बल्कि उसकी इज्जत को अंधेरे में दफन कर देना है. यह एक बच्ची के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ एक अपराध है और इस तरह के अपराध को जिस तरह से किया गया है, उससे यह अपराध बढ़ जाता है। अपराध की प्रकृति और जिस तरीके से इसे अंजाम दिया गया है, वह इसकी असामान्यता के बारे में बताता है। अपराध भ्रष्टता, पतन और असामान्यता की बात करता है। यह शैतानी और बर्बर है। अपराध अमानवीय तरीके से किया गया था। निस्संदेह, ये विकट परिस्थितियों को स्थापित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करते हैं।”

कोर्ट ने कहा कि “दोषियों ने पूर्व नियोजित तरीके से बौद्धिक रूप से विकलांग 9 साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना को बर्बरता पूर्वक और अत्यधिक गोपनीयता और पूरी सावधानी से अंजाम दिया है। दोषियों ने जानबूझकर एक मूक-बधिर नाबालिग लड़की के साथ यह अपराध किया था क्योंकि वह अपराधियों का नाम नहीं बता सकती थी। फिर उसके बाद उसकी आंखें जला दी गईं, ताकि वह उन्हें अपराधियों के रूप में पहचान न सके। फिर भी दोषियों को संदेह था कि वह किसी तरह उनकी पहचान बता सकती है, इसलिए उन्होंने उसका गला घोंट दिया और उसकी हत्या कर दी। “

कोर्ट ने कहा कि “बर्बर अपराध इस तरह से किया गया था कि दोषियों को कभी कोई पकड़ नहीं पाता हालांकि साक्ष्यों ने डीएनए रिपोर्ट, रक्त रिपोर्ट और फोरेंसिक रिपोर्ट के माध्यम से दोषियों के अपराध को बिना किसी संदेह के स्थापित किया है।”

कोर्ट ने कहा कि “कानून की अदालतें संभावित अपराधियों को चेतावनी देती हैं, जो भविष्य में इस तरह के अपराध करने की योजना बना सकते हैं कि अगर वे समाज के बच्चों के साथ ऐसा अपराध करते हैं तो वे अपने स्वयं के मृत्यु वारंट पर हस्ताक्षर करेंगे। कानून की अदालतें बस उन मौत के वारंटों को निष्पादित करेंगी।”

कोर्ट ने इस मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी का मानते हुए दोनों दोषियों को पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और आईपीसी की धारा 302 के तहत मृत्यु दंड सहित दोनों दोषियों को आईपीसी की धारा 364 और 34 के अपराध का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास सहित 5 हज़ार रूपये के जुर्माने और आईपीसी की धारा 201 में अपराध की लिए 7 साल के कठोर कारावास की सजा सहित 5 हज़ार रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।

Case: State Vs Ajay and Another (CNR No. HRPL01-003762-2020)

आदेश यहाँ पढ़ें –

Related post

आरोपी के खिलाफ साक्ष्य न होने की स्थिति में समझौते के आधार पर ख़त्म हो सकता है पॉक्सो और बलात्कार का मुकदमा : इलाहबाद हाई कोर्ट

आरोपी के खिलाफ साक्ष्य न होने…

इलाहबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते…
पोक्सो अधिनियम 2012 : पीड़िता के बयान दर्ज होने में विलंब आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने से नहीं रोकता : जम्मू और कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट

पोक्सो अधिनियम 2012 : पीड़िता के…

जम्मू कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने…
पोक्सो अधिनियम : बच्ची के साथ दुष्कर्म के आरोपी 17 साल के नाबालिग को 20 साल की कारावास

पोक्सो अधिनियम : बच्ची के साथ…

एक स्पेशल सेशन जज ने आँध्रप्रदेश…
पॉक्सो अधिनियम की धारा आकर्षित करने के लिए माता पिता ने बढ़ा चढ़ा कर मामले को पेश किया, कलकत्ता हाईकोर्ट ने पॉक्सो के दोषी की सजा को किया रद्द

पॉक्सो अधिनियम की धारा आकर्षित करने…

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम…
मरने से पूर्व दिया गया बयान दोषसिद्धि का एक मात्र आधार हो सकता है बशर्ते वह सुसंगत हो: कलकत्ता हाईकोर्ट

मरने से पूर्व दिया गया बयान…

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही मे…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *